प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 08)
द्विती
अरुण अब तक खाई में नीचे उतर चुका था। चारों ओर घना अंधेरा छाया हुआ था, आसपास में अजीब सा सनसनाहट गूंज रही थी मगर अरुण का ध्यान इनमें से कहीं भी नही था। खून के लगातार बहने से वह स्वयं को कमज़ोर महसूस कर रहा था, हालांकि उसने चोट पर अपनी शर्ट को बांध रखा था मगर यह उपाय उतना प्रभावी नही था। उसकी आँखों के सामने अंधेरा छाने लगा था, मन-मस्तिष्क पर अजीब से विचार हावी होने लगें। वह अभी तक उन मासूमों की दर्दनाक मौत के हादसे से उबरा नही था, उनकी दर्द भरीं चीखें अब भी उसके कानों में गूंज रही थी। शायद इसीलिए उसे अपने चोट की कोई भी फिक्र न थी।
"ये कौन हो सकता है? आखिर बच्चों को इस तरह मारने पर उसे क्या हासिल होगा?" अरुण सवालों के जाल में उलझा हुआ था, जो इसे सुलझा सके उसे ऐसा कोई तार नहीं मिल पा रहे थे। वह होश आते ही चलती गाड़ी से कूद गया पर कोई फायदा नही हुआ अब उसे जंगल के बीच इन खाइयों में भटकना पड़ रहा था।
"मुझे केस हाथ में लिए बस दो-तीन दिन हुए, इतने में ही मैं दो बार नाकाम हो चुका हूँ, मुझे बार बार नाकामी का ही मुँह क्यों देखना पड़ रहा है!" गुस्से से चिल्ला उठा वो, उसकी दर्दमिश्रित आवाज घाटी में गूंज गयी। "जिस दिन मुझे उन मासूमों का गुनाहगार मिला, मैं उसे ऐसी मौत दूंगा की उसकी सात पुश्तें भी कांप उठेंगी।" अरुण का चेहरा तमतमा उठा था, कमज़ोरी और अधिक गुस्से के कारण वह वहीं गिरने लगा, परन्तु उसने किसी तरह खुद को संभाला। अब तक अरुण उसी घाटी में पहुँच चुका था जहां उसने एक दिन पहले उन मासूम बच्चों सहित ट्रक को पकड़ा था। ट्रक के टुकड़े अब बिखरे पड़े थे, अरुण बड़े गौर से उस स्थान को देख रहा था।
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देहरादून पुलिस हेडक्वार्टर;
सभी मुँह लटकाए हुए बैठे थे, वैसे तो ये सब एक पुलिसवाले की आम ज़िंदगी का हिस्सा होता है मगर आज जिन्होंने भी इस घटनाक्रम को अपनी आँखों के समक्ष देखा था, उस दृश्य का ख्याल आते ही उनके रोंगटे खड़े हो जाते। आदित्य और मेघना एक साथ आमने सामने बैठे हुए थे, हेडक्वार्टर में अधिक लोग मौजूद नही थे क्योंकि अभी सभी अपने अपने चेक पोस्ट्स पर तैनात थे। आदित्य भी इसी उलझन में था कि आखिर किसी को ऐसा करके क्या हासिल होगा, यही नहीं तकरीबन बीस ऐसे ही बच्चें अब भी गायब हैं किसी भी चीज का कोई सुराग नहीं, ऊपर से इस घटना ने सबका दिमाग खराब कर दिया था।
"मैं समझ नही पा रहा हूँ कोई बच्चों के साथ ऐसा क्यों करेगा?" आखिरकार काफी देर से चुप्पी साधे आदित्य अपने मन में घुमड़ रहे सवाल को बाहर आने ही दिया।
"जिसने भी ऐसा किया, उसने कर दिया आदित्य! हम बुरी तरह फेल हुए!" मेघना ने लंबी साँस खींचते हुए कहा।
"पर अरुण ने उनका मेडिकल चेकअप के बाद यहां लाया था और फिर हमनें दुबारा चेकअप कराकर उन्हें उनके घर पर भेजा। घरवालों ने बताया था कि ये बच्चे कुछ दिन पहले ही गायब हुए थे।" आदित्य ने अपने दिमाग पर जोर देकर कोई कड़ी पकड़ने के उद्देश्य से कहा।
"मेन बात की उन्होंने बच्चों की रिपोर्ट तक नही लिखाई, मेडिकल टीम की रिपोर्ट भी बच्चों के सामान्य होने की पुष्टि कर रही थी फिर यह समझ नही आया कि अचानक से अरुण ने सभी को फिर से इक्कट्ठा क्यों किया और फिर ये हो गया।" मेघना अभी भी कई बातों को समझने की कोशिश कर रही थी।
"समझ नही आता इन मासूमों की जान से खेलकर किसी को क्या फायदा होगा?"
"मैं तो यही समझने की कोशिश कर रही हूँ कि अरुण ने कैसे जाना कि उन बच्चों के पास बम है!"
"शायद उसने बस अंदाजा लगाया हो?"
"तो तुम खुद ही बताओ आदित्य! कोई दो दो पूरी तरह से जांच किये जा चुके व्यक्ति पर ऐसा अंदाजा क्यों लगाएगा?"
"यानी उसे कोई तो सुराग मिला होगा जो उसे आपत्तिजनक लगा होगा, वह सही भी हो सकता है क्योंकि तुमने ही कहा था कि वह ट्रक जानबूझकर तुम्हारी नजरों में आया था, अगर वह चाहता तो आसानी से निकल सकता था! कोई अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी क्यों मारेगा?"
"तुम ये कहना चाहते हो कि….!"
"हां! यह किसी के बहुत बड़े प्लान का हिस्सा हो सकता है, तुम्हीं सोचों की ये सब अरुण के चार्ज संभालने और उस बन्दे को मारने के बाद ही क्यों शुरू हुआ? और तो और ये ऐसे बच्चे थें जिनके बारे में क्षेत्रीय पुलिस को रिपोर्ट भी नही लिखवाया गया था।"
"मतलब कोई बहुत शातिर दिमाग है इन सबके पीछे!"
"बेशक! मगर मैं यह नही समझ पा रहा कि इससे किसी का लाभ क्या होगा?"
"अगर अरुण यहां होते तो उन्हें उस ट्रक पर कैसे शक हुआ ये बता देते, फिर शायद हम कुछ कर सकते। इस समय तो हमपर बस थू-थू हो रही है, कोई भी सच्चाई सुनने को तैयार नहीं है।"
"पहले तो कम ही केस उलझा हुआ था, कमिश्नर सर को उस सनकी की पोस्टिंग करनी थी! अब तो इतना उलझ गया कि कोई छोर ही नजर नहीं आ रहा।"
"नजर आएगा आदि! हम हार नहीं मान सकते! सोचों अरुण इतना अधिक सनकी होने के बाद भी सीधा मुजरिमों के गले तक कैसे पहुंच जाता है!"
"मतलब हमें उसकी तरह सोचना होगा? इम्पॉसिबल! हालांकि नरेश जी की वजह से उग्र भीड़ काफी शांत हो गयी, मगर अगर हम असली अपराधी तक नही पहुँचे तो ये लोग फिर से रोड पर आ सकते हैं!"
"तब तो हमें अरुण की तरह ही सोचना पड़ेगा!"
"फायदा क्या है?"
"तुम खुद सोचों इस घटना से उस अपराधी को सबसे ज्यादा फायदा क्या हुआ है?"
"ऊंह..! पोलिटिकल मुद्दा, पब्लिक में डर पैदा करना और …"
"और अरुण का सस्पेंड किया जाना! यानी वो जो कोई भी है अरुण से डरता है, उसके तरीके से वाकिफ है वो!"
"पर हम अरुण नही बन सकते मेघ! उसे खुद नही मालूम होता कि वह अगले पल क्या करने वाला है या उसके साथ होने वाला है!"
"हमें अरुण बनना नहीं है, सिर्फ उसकी तरह सोचना है। कोशिश करना यह केस जल्दी से जल्दी खत्म हो, शुरुआत करेंगे होटल पैसेफिक से!"
"ठीक है! पर यहां की पब्लिक को प्रोटेक्ट करना भी हमारा फ़र्ज़ है मेघ! तुम केस पर ध्यान दो मैं इस शहर के सुरक्षा की कोई पुख्ता इंतजाम करने की तैयारी करके आता हूँ!"
"ठीक है आदि! अगर हमें अपने दिल से इस बोझ को उतारना है तो हमें यह केस सुलझाना ही होगा जल्दी! कहीं ऐसा न हो कि हमारे कुछ कर पाने से पहले वो अपराधी अपने मकसद में कामयाब हो जाये! भगवान जानें उसका मकसद क्या है?"
"अपना ख्याल रखना मेघ! अब जब तक देहरादून में पहले की तरह शांति नही होगी, मैं एक पल भी चैन से नहीं बैठूंगा!"
मेघना तेजी से बाहर निकली, इतनी लंबी बातचीत के बाद भी नतीजा वही 'ढाक के तीन पात' ही था। आदित्य सुरक्षा कड़ियों को और मजबूत करने के बारे में सोच रहा था, ताकि आगे से ऐसी घटनाएं घटित न होने पाए और वह केस पर पूरा ध्यान दे सके। सूरज कब का ढल चुका था, धरती को अंधेरे ने लील लिया था, पर शहर अब भी रोशनी से जगमगा रहा था। वातावरण काफी खुशनुमा लग रहा था मगर यह दुःखद था कि यहां शायद ही कोई खुश हो, जिन्होंने भी आज के इस न्यूज़ को देखा था वे बस प्रार्थना कर रहे थे कि ऐसा उनके बच्चों के साथ न हो! सभी का दिल उस मंजर की कल्पना कर सिहर जा रहा था, हरपल खुशियों के साये में पलने वाला यह शहर आज डर के साये में घिरा हुआ था, सबकी आँखों से नींद कोसो दूर थी।
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अगली सुबह..
यही खबर आज सुबह की भी हेडलाइन में घूम रही थी, मीडिया वालों ने न्यूज़ में नमक-मिर्च-मसाला मिलाकर इसे पुलिस और सरकार की कमीं साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा था। मीडिया ने तो बच्चों का कातिल अरुण को ही ठहरा दिया था, कई लोग इंस्पेक्टर अरुण से बेहद नफरत भी करने लगे थे।
"कोई इन मीडिया वालों को समझाएं की वे भी देश के चार स्तम्भों में से एक स्तम्भ हैं, लेकिन इस दुनिया में किसी को अपनी ताकत का गलत प्रयोग करने से फुरसत कहां, खुद गलती करो और इल्जाम किसी के भी सिर पर डाल दो! खुद कौन से दूध के धुले हैं? इनकी भी उतनी ही जिम्मेदारी है जितनी हमारी, इन्होंने कितनी निभाई?" टीवी पर न्यूज़ देखते ही वह भड़क पड़ा।
"अरे शांत हो जा धरन! जानता हूँ भाई तू जो भड़क रहा है वो सही है मगर सच यही है कि हम बुरी तरह नाकामयाब हुए हैं!" मुरली ने धरन को प्यार से समझाते हुए कहा।
"यही तो प्रॉब्लम है न मुरली भैया! हम चौबीसों घण्टे अपने जान की बाजी लगाकर ड्यूटी करें वो किसी को नही दिखता मगर एक-दो बार नाकाम क्या हो जाओ ऐसा लगता है कि हमसे निकम्मा कोई है ही नहीं!"
"जानते हो धरन पापा हम दोनों पुलिस में क्यों भर्ती करना चाहते थे? इसलिए नहीं कि हम बात-बात पर ऐसे भड़क जाएं, बल्कि इसलिए कि हम अपनी जिम्मेदारियों को सही से समझें! किसी के कहने से कुछ नहीं होता, हमारा दिल क्या कहता है ये जरूरी है!" मुरली ने धरन को समझाया। "अच्छा जल्दी चलो, आदित्य सर के आने का वक़्त हो गया!"
"पर कल जो हुआ वो वाकई में भयानक था भैया! मेरी तो रूह तक काँप जाती है उस मंजर को याद करके!" धरन की आँखे डबडबा गयी। "अभी तक मेरे कपड़ो पर उन मासूमों का खून लगा हुआ है..!"
"मेरे भाई! जिसने भी ऐसा किया है, वो चाहें जो कोई हो अगर वो मिला तो…!" उस मंजर को याद करते ही मुरली की भौहें चढ़ गयी।
"चलो, हम लेट हो रहे हैं!" कहते हुए धरन ने मुरली को उसकी टोपी पकड़ाई!"
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"अहह!" सूर्य की हल्की रोशनी चेहरे पर आने से उसकी आँख खुली, वह लड़खड़ाते हुए उठा। सुबह की ताजी हवा ने उसे तरोताजा कर दिया था एक पल को वह सबकुछ भूल गया। उसके बाएं हाथ का खून सूख चुका था, वह लड़खड़ाते हुए एक ओर आगे बढ़ा। वह कोशिश कर रहा था कि सभी दुर्भावनाओं से बचे मगर अचानक फिर से वही सब उसके दिमाग पर हावी आने लगा। गुस्से के मारे उसका चेहरा लाल हो गया, उसके जबड़े भींच गए और मुक्का बन्ध गया। इस वक़्त उसके जिस्म पर केवल नीली रंग की जीन्स थी जो उसके ही लहू में सनकर लाल हो गयी थी। उसकी चौड़ी मजबूत छाती दिखाई दे रही थी, भुजाएं बुरी तरह फड़क रही थीं। वातावरण में पक्षियों के कलरव का शोर गूंज रहा था, उसने एक चट्टान पर जोरदार मुक्का मारा!
"कुछ भी समझ नही आ रहा है कि ये सब कौन कर रहा है! मुझे यहां से कुछ सस्पेक्ट कलेक्ट करके हेडक्वार्टर भी जाना होगा।" अरुण अब भी बुरी तरह उलझा हुआ था, मगर अभी तक उसे अपने सस्पेंशन के बारे में नही पता था। वह ट्रक के बिखरे टुकड़ों में से खाक छानने लगा, काफी मशक्कत के बाद भी उसे कुछ हासिल नही हुआ।
"मुझे बच्चे इसी ट्रक से मिले थे, उसके बाद पूरे टाइम मेरे साथ रहे तो जो भी कुछ हुआ है वो पक्का इसी ट्रक होना चाहिए! मगर वो दूसरा ट्रक..? उसकी तो नम्बर प्लेट भी सेम यही थी!" अरुण ने नम्बर प्लेट के टुकड़े को उठाते हुए कहा, वह जलने की वजह से काला पड़ गया था मगर उसमें अब भी नम्बर स्पष्ट दिखाई दे रहा था।
"ट्रक में ऐसा कुछ भी नही मिला जो थोड़ा अजीब लगे, पर ट्रक में विस्फोट कैसे हुआ? यानी वो चाहता था कि मेरा ध्यान सिर्फ इसके विस्फोट पर रहे और वह अपने मकसद में कामयाब हो जाये!" अरुण और अधिक उलझता चला जा रहा था। "इतनी बड़ी शिकस्त? उफ्फ.. अगर उसने मुझे मारने के लिए विस्फोट नहीं किया तो.. वो चाहता तो बड़ी आसानी से मुझे या बच्चों को मार सकता था, मगर उसने यह सबके सामने कराया आखिर कौन है वो…?"
अरुण ने उस जगह को बुरी तरह खंगाल लिया मगर उसे कुछ हासिल नही हुआ, अचानक उसकी नजर किसी चीज पर पड़ी।
"अरे! यह क्या?" उस नीडल के टुकड़े को उठाते हुए अरुण ने कहा। यह इतना छोटा है कि दिखाई तक नही दे रहा था। यह नीडल इस ट्रक में क्या कर रही है?" तभी उसके दिमाग की घण्टी जोरो से बाजी, उसे वह दृश्य याद आया जब वह लड़का अपने पेट के नीचे की तरफ इशारा कर रहा था।
"हे भगवान!!" वह समझ चुका था बम कहाँ फ़ीट किया गया था, उसी रास्ते वह बाद में पेट तक चला गया, इसीलिए वह किसी जांच में भी नजर नही आया। यह समझते ही उसका मुँह खुला का खुला रह गया, उसकी आँखों में क्रोध की ज्वाला भड़क उठी। "मैं आ रहा हूँ हत्यारों! अब तुम बेरहमों को इतनी बेरहमी दिखाऊंगा की बेरहमी का मतलब सीख जाओगे!" उसकी नसे जोर से फड़कने लगीं, ऐसा लग रहा था मानों उसकी त्वचा को चीरकर शरीर से बाहर आने को आतुर हों!
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क्रमशः...
Seema Priyadarshini sahay
11-Nov-2021 06:17 PM
बहुत खूबसूरत भाग
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Niraj Pandey
29-Oct-2021 03:56 PM
बहुत ही बेहतरीन भाग👌
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